सर्वेक्षण में नीति निर्माताओं से लागत को उचित बनाए रखने तथा छात्रों को चिकित्सा शिक्षा के लिए विदेश जाने से रोकने के लिए हस्तक्षेप करने का आह्वान किया गया.
आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में भारतीय चिकित्सा शिक्षा के समक्ष आने वाली समस्याओं के बारे में चेतावनी दी गई है, जैसे पारिश्रमिक अंतराल, प्रवास, निजी कॉलेजों की फीस का विनियमन और भूतपूर्व शिक्षकों की संख्या में वृद्धि की बात की गई है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक मेडिकल शिक्षा शुल्क को कम करने की भी मांग की गई है, जो निजी क्षेत्र में 1 करोड़ रूपये तक है , जो MBBS सीटों का 48% है. इसने नीति निर्माताओं से लागत को उचित रखने और छात्रों को चिकित्सा अध्ययन के लिए विदेश जाने से रोकने के लिए हस्तक्षेप करने का आह्वान किया.
वर्ष 2021 में आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) के देशो ने एक रिपोर्ट में कहा की उनके सामूहिक कार्यबल में भारत लगभग 19,000 चिकित्सक थे, और लगभग 2,800 काम के लिए वहां चले गए थे.
कम वेतन के कारण पलायन
सर्वेक्षण में कहा गया है कि नए स्नातकों को प्रति वर्ष लगभग 5 लाख रूपये का पारिश्रमिक मिलता है. और वरिष्ठ डॉक्टर शहरों में प्रति वर्ष 12.5 लाख रूपये से 18.4 लाख रूपये कमाते हैं, जिसके कारण कई लोग शहरी क्षेत्रों में पलायन करते हैं. सर्वेक्षण में कहा गया है, “यह प्रवेश स्तर पर अन्य स्नातकों के लिए उपलब्ध पैकेजों के लगभग समान या उससे कम है.” सर्वेक्षण में कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में सेवा के लिए प्रोत्साहनों को निर्धारित करते समय पलायन के रुझान को ध्यान में रखना चाहिए.
शिक्षकों की कमी, उच्च फीस
सर्वेक्षण में शिक्षकों की कमी, शिक्षकों की अनुपस्थिति और अस्पतालों में मरीजों की कम संख्या जैसे मुद्दों पर भी प्रकाश डाला गया, जो प्रशिक्षण की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं. अन्य व्यावसायिक शिक्षा धाराओं के विपरीत, चिकित्सा शिक्षा के लिए फीस अत्यधिक विनियमित होती है. सरकारी मेडिकल कॉलेजों की फीस नक्की करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है, जबकि निजी मेडिकल कॉलेजों की फीस राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) द्वारा विनियमित की जाती है.
ऐसे उपायों के बावजूद भी ,फ़ीस काफी ज्यादा है. इसकी फ़ीस निजी क्षेत्र में 60 लाख रूपये से 1 करोड़ रूपये या उससे ज़्यादा ,और यहाँ पे MBBS की 48 % सीटे है. यह सभी के लिए, और ख़ास तौर पर कम सुविधा प्राप्त पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों के लिए चिकित्सा शिक्षा को ज़्यादा सुलभ और किफ़ायती बनाने के अवसर को उजागर करता है. चिकित्सा शिक्षा की लागत को कम करके, हम स्वास्थ्य सेवा लागत को कम करने में योगदान दे सकते हैं,”इसने कहा. उच्च शुल्क के कारण, हज़ारों भारतीय छात्र चिकित्सा शिक्षा के लिए लगभग 50 देशों की यात्रा करते हैं, जिस में ख़ास तौर पर चीन, रूस, यूक्रेन, फिलीपींस और बांग्लादेश जैसे कम शुल्क वाले देशों में.
2023 में, केवल 16.65% छात्र एफएमजी परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, जो विदेशों में चिकित्सा शिक्षा की घटिया गुणवत्ता को दर्शाता है, जिसमें नैदानिक प्रशिक्षण की कमी भी शामिल है,” इसने कहा. एफएमजी को अपनी डिग्री प्राप्त करने के बाद भारत में 12 महीने की इंटर्नशिप पूरी करनी होती है.
सीटों का असमान वितरण
सर्वेक्षण में रेडियोलॉजी, त्वचाविज्ञान, स्त्री रोग और कार्डियोलॉजी जैसे विशेषज्ञताओं के पक्ष में सीटों के असमान वितरण पर भी प्रकाश डाला गया है, जो मनोचिकित्सा और जराचिकित्सा जैसे क्षेत्रों की कीमत पर है. इसमें कहा गया है कि स्नातक की 51% सीटें और स्नातकोत्तर की 49% सीटें दक्षिण भारत में हैं.
सर्वेक्षण में कहा की “इसके अलावा, उपलब्धता शहरी क्षेत्रों के पक्ष में है, जहाँ शहरी-से-ग्रामीण डॉक्टर घनत्व अनुपात 3.8:1 है. ये पैटर्न सामान्य रूप से स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता के पैटर्न का अनुसरण करते हैं. यह अनुमान लगाया गया है कि 75% डिस्पेंसरी और 60% अस्पताल शहरी क्षेत्रों में हैं, जहाँ 80% डॉक्टर सेवा करते हैं। वितरण में असंतुलन को राज्य/क्षेत्र के आर्थिक विकास के स्तर, स्वास्थ्य सेवाओं की मांग और विस्तार, और मेडिकल वैल्यू ट्रैवल के लिए बढ़ते बाजार के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.”